उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राज्य में पोस्टमार्टम प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी, त्वरित और तकनीकी रूप से उन्नत बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। नई गाइडलाइन के तहत अब सभी पोस्टमार्टम प्रक्रियाएं चार घंटे के भीतर पूरी करनी होंगी। यह फैसला न केवल जांच प्रक्रिया को गति देगा, बल्कि पीड़ित परिवारों को शीघ्र न्याय मिलने में भी मदद करेगा।
📋 नई गाइडलाइन में क्या-क्या शामिल है?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में जारी इन निर्देशों में कुछ अहम प्रावधान शामिल हैं:
- पोस्टमार्टम अब प्रारंभ होने के चार घंटे के भीतर अनिवार्य रूप से पूरा करना होगा।
- संवेदनशील मामलों—जैसे पुलिस कस्टडी में मृत्यु, एनकाउंटर या अप्राकृतिक मौत—की वीडियोग्राफी अनिवार्य की गई है।
- सभी रिपोर्टों को ऑनलाइन पोर्टल पर तय समय सीमा के अंदर अपलोड किया जाएगा।
- डॉक्टरों और फॉरेंसिक विशेषज्ञों को स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) का पालन करने के निर्देश दिए गए हैं।
- फिजिकल रिपोर्टिंग की जगह अब डिजिटल टेम्पलेट्स और AI टूल्स के उपयोग पर भी विचार किया जा रहा है।
🕒 यह बदलाव जरूरी क्यों था?
राज्य में पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने में 2 से 3 दिन तक का समय लग जाता था। इसमें टाइपिंग, दस्तावेज़ीकरण और फिर पुलिस को सौंपने की प्रक्रिया शामिल होती थी। इसके चलते कई आपराधिक मामलों में देरी होती थी, और न्याय पाने में पीड़ित परिवारों को मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता था।
अब इन सभी देरी वाली प्रक्रियाओं को खत्म करने के लिए डिजिटल प्रणाली को लागू किया गया है। समय सीमा तय होने से न केवल प्रशासनिक जवाबदेही बढ़ेगी, बल्कि जांच भी निष्पक्ष व पारदर्शी हो पाएगी।
⚖️ न्यायिक और नैतिक दृष्टिकोण
इस गाइडलाइन का महत्व सिर्फ प्रशासनिक ही नहीं, बल्कि नैतिक और कानूनी रूप से भी अत्यधिक है। वीडियोग्राफी से पोस्टमार्टम की प्रक्रिया का प्रमाणिक रिकॉर्ड तैयार होगा, जिससे किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ की संभावना कम हो जाएगी। आवश्यकता होने पर यह वीडियो कोर्ट में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
यह कदम उन मामलों में विशेष रूप से लाभकारी साबित होगा जहां अक्सर पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर सवाल उठाए जाते थे। अब प्रक्रिया को पारदर्शी बनाकर जनता का विश्वास फिर से बहाल करने की कोशिश की जा रही है।
🏥 व्यवहारिक कार्यान्वयन: ज़मीनी तैयारी
- राज्य के सभी जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों को अगले 30 दिनों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित करने का निर्देश दिया गया है।
- लखनऊ, कानपुर, वाराणसी जैसे शहरों में डॉक्टरों व स्टाफ के लिए प्रशिक्षण शिविर शुरू कर दिए गए हैं।
- एक केंद्रीकृत डैशबोर्ड तैयार किया जा रहा है जो हर जिले की रिपोर्टिंग टाइमलाइन पर नजर रखेगा।
यदि कोई अस्पताल चार घंटे की समयसीमा का पालन नहीं करता, तो स्पष्टीकरण मांगा जाएगा और ज़िम्मेदार व्यक्तियों पर कार्रवाई की जा सकती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली, इंटरनेट और संसाधनों की कमी को ध्यान में रखते हुए मोबाइल फॉरेंसिक वैन, बैकअप पॉवर सिस्टम और तकनीकी सहायता टीमें भी तैयार की जा रही हैं।
💬 चिकित्सकों और आम जनता की प्रतिक्रियाएं
कई डॉक्टरों और फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने इस कदम को “स्वागत योग्य लेकिन चुनौतीपूर्ण” कहा है।
“यह बदलाव सकारात्मक है, परंतु इसके लिए स्टाफ की संख्या, प्रशिक्षण और उपकरणों की पर्याप्त व्यवस्था जरूरी है,” — किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ पैथोलॉजिस्ट।
वहीं आम जनता का कहना है कि अब शवों को जल्दी सौंपे जाने से धार्मिक रीति-रिवाज भी समय पर पूरे किए जा सकेंगे और पीड़ित परिवारों को मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।
🌐 डिजिटल शासन की दिशा में एक अहम कदम
यह निर्णय डिजिटल इंडिया मिशन के तहत सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रयासों को दर्शाता है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में यदि यह नीति सफल होती है, तो अन्य राज्यों में भी इसे अपनाया जा सकता है।
साथ ही, यह नीति भारत को अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब लाती है—जैसे यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया में जहां संवेदनशील मामलों में वीडियोग्राफिक ऑटोप्सी को पहले ही अपनाया जा चुका है।
✅ निष्कर्ष
उत्तर प्रदेश सरकार की यह पहल सिर्फ प्रशासनिक सुधार नहीं है, बल्कि यह न्याय, पारदर्शिता और तकनीकी दक्षता की दिशा में एक सार्थक क्रांति है। यदि इसे सही ढंग से लागू किया गया, तो यह देशभर के लिए एक उदाहरण बन सकता है।